भागता है ऊद विलाव
जनतंत्र की बिल से निकलकर
जनादेश के लिए जन लुभावन रूप दिखाता
पक्ष-विपक्ष की सेनाओं के बीच
आत्म सत्ता का महाभारत-युद्ध रचता
बार बार अपने अहं के रथ पर बैठ
दूर दूर वार करता
किन्तु अविवेक से लड़ा गया युद्ध हारता
जनमत-संघर्ष में घायल
अपनी बिल में घुसकर बैठ जाता
ऊद बिलाव बार बार जीर्ण-शीर्ण,
जनतंत्र के गलियारे से चलकर
भव्य राजपथ पर पहुंच जाता
जिसके अंतिम छोर पर जल रहा आजादी का अलाव
पास में सत्ता की कुर्सी खाली पड़ी है
जो आदमी की आत्म-सत्ता से बड़ी है
और उसी के लिए तो भागता सरपट, झटपट रंग बदलता
और तरह-तरह से बदलता हाव-भाव
लोकतंत्र का ऊद विलाव
- स्वदेश भारती
5 अप्रैल, 2014
आत्म छलना-5
अयोध्या के राम
आम-जन की बातें सुनते-सुनाते थे
और शिकायतों को सुलझाते थे
तब अपने व्यक्तिगत संबंधों के
विखरे ताने बाने को ठीक करते
किन्तु आज के आया राम, गया राम
कुर्सी के लिए आमजन का विश्वास तोड़ते
व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रदीप बुझाते
स्वार्थ और लोभ का अंधकार रचाते
प्रजातंत्र में अनैतिकता एक औजार है
जिसे प्रत्येक सत्ताधारी
अपनी सुरक्षा कवच के लिए इस्तेमाल करता है
उसे सदा अपने पास सहेजकर रखता है
उसके लिए आमजन, आमराय,
जनमत बहेलिए का खडयंत्र जनित
आखेटक खेल है
समय का तकाजा है कि
सत्ताधारी प्रदीप तब तक ही जलता है
जितना और जब तक उसमें आत्मलोभ का तेल है
- स्वदेभ भारती
6 अप्रैल, 2014
जनतंत्र की बिल से निकलकर
जनादेश के लिए जन लुभावन रूप दिखाता
पक्ष-विपक्ष की सेनाओं के बीच
आत्म सत्ता का महाभारत-युद्ध रचता
बार बार अपने अहं के रथ पर बैठ
दूर दूर वार करता
किन्तु अविवेक से लड़ा गया युद्ध हारता
जनमत-संघर्ष में घायल
अपनी बिल में घुसकर बैठ जाता
ऊद बिलाव बार बार जीर्ण-शीर्ण,
जनतंत्र के गलियारे से चलकर
भव्य राजपथ पर पहुंच जाता
जिसके अंतिम छोर पर जल रहा आजादी का अलाव
पास में सत्ता की कुर्सी खाली पड़ी है
जो आदमी की आत्म-सत्ता से बड़ी है
और उसी के लिए तो भागता सरपट, झटपट रंग बदलता
और तरह-तरह से बदलता हाव-भाव
लोकतंत्र का ऊद विलाव
- स्वदेश भारती
5 अप्रैल, 2014
आत्म छलना-5
अयोध्या के राम
आम-जन की बातें सुनते-सुनाते थे
और शिकायतों को सुलझाते थे
तब अपने व्यक्तिगत संबंधों के
विखरे ताने बाने को ठीक करते
किन्तु आज के आया राम, गया राम
कुर्सी के लिए आमजन का विश्वास तोड़ते
व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रदीप बुझाते
स्वार्थ और लोभ का अंधकार रचाते
प्रजातंत्र में अनैतिकता एक औजार है
जिसे प्रत्येक सत्ताधारी
अपनी सुरक्षा कवच के लिए इस्तेमाल करता है
उसे सदा अपने पास सहेजकर रखता है
उसके लिए आमजन, आमराय,
जनमत बहेलिए का खडयंत्र जनित
आखेटक खेल है
समय का तकाजा है कि
सत्ताधारी प्रदीप तब तक ही जलता है
जितना और जब तक उसमें आत्मलोभ का तेल है
- स्वदेभ भारती
6 अप्रैल, 2014
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