Wednesday 20 November 2013

Swadesh Bharati: रिपोर्ट - अंतर्राष्ट्रीय सार्क भाषा साहित्य सम्मेल...

Swadesh Bharati: रिपोर्ट - अंतर्राष्ट्रीय सार्क भाषा साहित्य सम्मेल...: रिपोर्ट अंतर्राष्ट्रीय सार्क भाषा साहित्य सम्मेलन गंगटोक (सिक्किम) 27, 28 एवं 29 अक्टूबर, 2013 राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 144वीं...

रिपोर्ट - अंतर्राष्ट्रीय सार्क भाषा साहित्य सम्मेलन, गंगटोक (सिक्किम) 27, 28 एवं 29 अक्टूबर, 2013

रिपोर्ट

अंतर्राष्ट्रीय सार्क भाषा साहित्य सम्मेलन

गंगटोक (सिक्किम) 27, 28 एवं 29 अक्टूबर, 2013


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 144वीं जयंती के उपलक्ष्य में एवं राष्ट्रीय आजादी की 66वीं वर्षगांठ के अवसर पर राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी रूपाम्बरा द्वारा सिक्किम की राजधानी गान्तोक में 27 से 29 अक्टूबर 2013 तक अंतरराष्ट्रीय भाषा साहित्य सम्मेलन का आयोजन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। सम्मेलन में भारत सरकार के मंत्रालयों, विभागों निगमों, उपक्रमों तथा प्रादेशिक सरकारों के प्रतिनिधि, सुप्रतिष्ठित लेखक, कवि, विद्वान लगभग 200 की संख्या में उपस्थित थे। सम्मेलन का उद्घाटन सिक्किम के माननीय मुख्यमंत्री के स्थान पर श्री एन. के. प्रधान, माननीय उच्च शिक्षामंत्री ने किया तथा अध्यक्षता विशिष्ट अतिथि सिक्किम के विधानसभा-सदस्य श्री डोरजी नामग्याल ने किया। सम्मेलन का उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को माल्यार्ण कर एवं पंच प्रदीप जलाकर करतल ध्वनि के साथ किया गया। मुख्य अतिथियों एवं उपस्थित प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी रूपाम्बरा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कविवर स्वदेश भारती ने स्वागत वक्तव्य में कहा कि भाषा एवं साहित्य संस्कृति की नदी के दो तट होते हैं। नदी के प्रवाह के लिए तटों का होना आवश्यक है। मनुष्य की सभ्यता के प्रारब्ध से लेकर आज तक भाषा और साहित्य ने समाज, राजनीति एवं मानव व्यवहार को प्रभावित किया, नये अवदान प्रदान किए। जहां राजनीति अवसरवाद तथा लोभ से मनुष्य को किसी न किसी प्रकार तोड़ती है। वहीं भाषा, साहित्य एवं संस्कृति मनुष्य को जोड़ती है। यह सम्मेलन भाषा साहित्य एवं संस्कृति के उन्नयन की दिशा में एक कारगर कदम है। श्री भारती ने यह भी कहा कि मनुष्य जब भाषा और संस्कृति का दामन छोड़ देता है तब उसका अधोपतन प्रारम्भ हो जाता है। यह बात व्यक्तिगत भी हो सकती है और सामाजिक तथा राजनीतिक स्तर पर भी लागू होती है। इसलिए हमें आज के माहौल में राजनीति की भाषा की राजनीति में आना होगा। भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के व्यापक उन्नयन के लिए कार्य करना होगा। श्री दोरजी नामग्याल ने अपने भाषण में कहा कि सिक्किम एक छोटा सा प्रदेश है। यहां कई भाषाएं चलती हैं और सिक्किम की प्रत्येक भाषा में जो भी साहित्य लिखा जाता है उस पर हम गम्भीरता के साथ काम करते हैं। यहां सिक्किम नेपाली अकादमी है जो  नेपाली भूटिया, लेप्चा लेखकों को प्रोत्साहन देती है। सिक्किम में अंतराष्ट्रीय भाषा साहित्य सम्मेलन अकादमी ने आयोजित किया इसके लिए सिक्किम की जनता अकादमी के प्रति आभार प्रकट करती है। यह बात सही है कि भाषा साहित्य और संस्कृति के बिना हम एक पग भी आगे नहीं बढ़ सकते। सारे राष्ट्र के लिए एक भाषा होना जरूरी है। और वह हिन्दी होनी चाहिए। श्री एन. के. प्रधान माननीय उच्च शिक्षा मंत्री ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने भाषण में कहा कि सिक्किम में बॉलीवुड हिन्दी चलती है, जिसे सिक्किम के बहुसंख्यक लोग बोलते हैं। सिक्किम में नेपाली, भुटिया और लेप्चा भाषाएं प्रचलित हैं, परन्तु लगभग 95 प्रतिशत लोग नेपाली हिन्दी बोलते हैं। इससे लोगों में एकता स्थापित है। हमें अपनी भाषा को उत्तरोतर आगे बढ़ने के लिए प्रयास करना चाहिए। हम अपने प्रदेश में भाषा के माध्यम से एकता और सौहार्द्र स्थापित करने का प्रयास करते हैं।
उद्घाटन समारोह में सम्मेलन स्मारिका के रूप में रूपाम्बरा का भाषा-साहित्य विशेषांक, डॉ. स्वदेश भारती द्वारा संपादित वृहत् कार्यालयीन तकनीकी भाषा कोश तथा कई अन्य लेखकों की पुस्तकों का विमोचन हुआ। इसके साथ मध्य प्रदेश सरकार की राजभाषा पत्रिका पंचायिका भारत सरकार टकसाल की मुम्बई मिन्ट पत्रिका, गौहाटी रिपाइनरी की प्रागज्योतिका, बैंक आफ महाराष्ट्र पुणे की पत्रिका- महाबैंक प्रगति तथा गोवा शिपयार्ड की राजभाषा पत्रिका- गोवायार्ड समाचार को अंतर्राष्ट्रीय राजभाषा पत्रिका शील्ड सम्मान द्वारा मुख्य अतिथि श्री प्रधान ने सम्मानित किया।
लोकसभा सचिवालय मध्य प्रदेश, माध्यम भारत प्रतिभूति मुद्रण एवं मुद्रा निर्माण निगम मुम्बई, गोवाशिपयार्ड लिमिटेड गोवा, गौहाटी रिफाइनरी, इंडियन आयल कार्पोरेशन, गुवाहाटी, कम्पनी रजिस्ट्रार, भारत सरकार, पश्चिम बंगाल, कोलकाता, रेलमंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली आदि को अंतर्राष्ट्रीय राजभाषा शील्ड सम्मान द्वारा सम्मानित किया गया।
नेपाली के प्रख्यात लेखक, कवि श्री वीरभद्र कार्कीढोली तथा 10 सम्मेलनों में लगातार भागीदारी करने के लिए संसदीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार में सहायक निदेशक, राजभाषा सुश्री मृगनैनी को विशिष्ट हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया।
दिनांक 28.10.13 को आयोजित अंतर्राष्ट्रीय साहित्य संगोष्ठी का विषय था भारतीय भाषाओं के उन्नयन तथा विकास में तकनीकी प्रशिक्षण की अनिवार्यता। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता श्री प्रमोद मोहन जौहरी, मुख्य महाप्रबंधक (मा.सं. एवं प्रशासन) गोवा शिपयार्ड लि. ने किया। इस संगोष्ठी के संचालन के लिए एक पैनल बनाया गया था जिससे डॉ. अनिल कुमार शर्मा, मुख्य महाप्रबंधक, भारत सरकार, टकसाल, मुम्बई, श्री के.पी. सत्यानन्दन, निदेशक, राजभाषा, रेल मंत्रालय, रेलवे बोर्ड, नई दिल्ली, श्री नगेन्द्र कुमार मिश्र, प्रबंधक राजभाषा, इंजीनियर्स लि. नई दिल्ली थे। डॉ. स्वदेश भारती ने संगोष्ठी का शुभारम्भ करते हुए कहा कि भाषा और साहित्य मानव शरीर में रीढ़ और मस्तिष्क की तरह काम करते हैं। उन्होंने इस बात पर दुःख प्रकट किया की सभी राजनेता वोटों की राजनीति में फंसते जा रहे हैं। भाषा और साहित्य की चिन्ता किसी को नहीं है। जबकि किसी भी राष्ट्र की सार्वभौम सत्ता के लिए चार बातें महत्वपूर्ण होती हैं- 1. संविधान, 2. राष्ट्र ध्वज, 3. राष्ट्रगान, 4. राष्ट्रभाषा। विश्व की सभी भाषाएं आज जितनी अधिक तेजी से तरक्की कर रही हैं हम उनके बहुत पीछे हैं। केन्द्र सरकार द्वारा पोषित संचालित अकादमियां अथवा प्रादेशिक सरकारों द्वारा स्थापित किए गए भाषा संस्थान उस मात्रा में काम करते हैं। जितना आज के परिवेश में भाषा, साहित्य के उन्नयन हेतु होना जरूरी है। इसलिए हमें गम्भीरता के साथ यह सोचना होगा कि बेहतर अनुवादों के माध्यम से भारतीय भाषाओं को सार्क देशों की भाषाओं के साथ जोड़कर दक्षिण पूर्वी एशिया में भाषा साहित्य का व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार किया जा सके। यह सम्मेलन इसी बात को रेखांकित करना चाहता है कि हम केवल राजनीति के फैशन स्वार्थ और अपनी सुख-सुविधा में ही उलझे नहीं रहे, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता, गौरव तथा सामाजिक उत्थान हेतु भाषा और साहित्य को अधिक उन्नतिशील बनाएं।
डॉ. अनिल कुमार शर्मा, मुख्य महाप्रबंधक, भारत सरकार टकसाल, मुम्बई ने कहा कि हमें हिन्दी को सार्क देशों में अनुवाद के माध्यम से ले जाना चाहिए तथा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में सरकार की व्यापक भूमिका होनी चाहिए। श्री केपी सत्यानन्दन निदेशक, रेलवे बोर्ड, रेल मंत्रालय ने कहा कि हिन्दी कार्यान्वयन में रेल मंत्रालय सबसे आगे है। हमने सारे देश में कम्प्यूटरों पर टिकट आरक्षण करने के लिए हिन्दी का साफ्टवेयर प्रोन्नत किया। हमारे सभी विभागों एवं कार्यालयों में हिन्दी का काम बहुत तेजी से चल रहा है। इस सम्मेलन में हमें अंतर्राष्ट्रीय राजभाषा शील्ड सम्मान देकर जो प्रोत्साहन दिया गया है, उसका हम सम्मान करते हैं और यह आश्वस्त करते हैं कि भारतीय रेल हिन्दी कार्यान्वयन में सबसे आगे चलने के लिए हर तरह से तैयार है। श्री नगेन्द्र कुमार मिश्र, प्रबंधक, इंजीनियर्स इंडिया लि. ने कहा कि अंग्रेजी की मानसिकता को हटाना चाहिए। हिन्दी के विकास में हिन्दी के पंडित अधिक बाधा डालते हैं। हिन्दी कोश तो बनाए गए, लेकिन शब्द बेहद क्लिष्ट है। साहित्य की भाषा अलग होती है। बोलचाल और काम करने की भाषा अलग होती है। साहित्यकार संपादक श्री महेन्द्र गगन ने कहा कि भारतीय भाषाओं में अधिक अनुवाद होना चाहिए। अनुवाद प्रशिक्षण पर अधिक से अधिक ध्यान देना चाहिए। श्री ए.के. कारबल, वरिष्ठ लेखाधिकारी, भारतीय रेलवे ने कहा कि सरल हिन्दी में अनुवाद के माध्यम से विषय की अच्छी जानकारी प्राप्त हो सके, ऐसा प्रयास होना बहुत जरूरी है। संगोष्ठी में लगभग चौबीस अधिकारियों एवं साहित्यकारों ने भाग लिया। संगोष्ठी का समापन करते हुए अध्यक्ष श्री जौहरी ने कहा कि महाभारत के भीतर विस्तृत तकनीकी पक्ष मौजूद थे। महाभारत में जीवन की सामाजिक एवं संस्कृतिक व्यवहारिता है। रामचरित मानस में भी तकनीकी पक्ष है। हमें उसका प्रभाव पूरी तरह से जानना चाहिए। श्री जौहरी ने यह भी कहा कि प्रशासन मे 3.60 डीग्री की बात होती है। इसलिए प्रत्येक प्रशासनिक को अपने काम को जिसमें हिन्दी शामिल हो सत् प्रतिशत बेहतर ढंग से संयोजित-संचालित करना चाहिए। कार्यालयों में भाषा को अधिक से अधिक महत्व देना जरूरी है। उन्होने यह भी कहा परिवर्तन प्रकृति का नियम है। हिन्दी की दिशा तथा दशा को सुधारना हम सब का सम्मिलित काम है। मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान है। यह बात सच है कि अब अंग्रेजी की मानसिकता को हटाना चाहिए। कम्प्यूटर में गुगुल पांच तरह की भाषाएं प्रयोग करता है। भाषा की संवेदनात्मकता मशीनी अनुवाद के माध्यम से उपलब्ध नहीं होती। अनुवाद को शुद्ध, सरल भाषा में इस्तेमाल करना चाहिए। सरल हिन्दी में अनुवादकों को प्रशिक्षण दिया जाए। जिससे वे उस विषय में अच्छी जानकारी प्राप्त हो सके। इसी सत्र में हिन्दी का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप, भूमंडलीकरण, वैश्वीकरण के दौर में शामिल कर लिया गया था। लंच के बाद हिन्दी प्रयोग एवं प्रचार-प्रसार में कठिनाइयां और निदान विषय पर चर्चा आरम्भ हुई। इस सत्र के अध्यक्ष साहित्यकार श्री महेन्द्र गगन थे। संगोष्ठी के पैनल में श्री वी. के. जैन मुख्य अधिकारी राजभाषा, रेल मंत्रालय, पटियाला, श्री मेहरबान सिंह नेगी, उप महाप्रबंधक, उत्तर रेलवे नई दिल्ली, श्री भरत सिंह यादव, प्रबंधक राजभाषा, इंजीनियर्स इंडिया लि., श्रीमती लता अम्बवानी, पर्यवेक्षक (मा.सं), पावर ग्रिड कार्पोरेशन इंडिया लि., डॉ. नरेश मिश्रा, संपादक-लोकसभा, श्री अशोक कुमार कारवल, पंचायती राजमंत्रालय, भारत सरकार श्री नरेश मिश्रा, सम्पादक, लोकसभा, प्रो. एस. चन्द्रैया, हैदराबाद आंध्र प्रदेश। इस संगोष्ठी का शुभारम्भ करते हुए श्री प्रमोद मोहन जौहरी, मुख्य महाप्रबंधक, गोवाशिपयार्ड ने कहा कि हम झील बने तो ठहरे रहे, दरिया बनते तो दूर निकल जाते। हिन्दी को दरिया की रवानी बनाना है। आम आदमी कौन सी भाषा समझ सकता है वैसी ही भाषा का प्रयोग होना चाहिए। सरकारी कार्यालयों में पदस्त हिन्दी अधिकारियों को यह बात समझना है। श्री नगेन्द्र कुमार मिश्र, वरिष्ठ प्रबंधक इंजीनियर्स इंडिया ने कहा कि तकनीकी ज्ञान के लिए मानसिकता को बदलना जरूरी है। तकनीकी भाषा के अंदर तकनीकी शब्द बंधा होता है। शब्दों के चयन में स्तरीय ज्ञान होना जरूरी है। अनुवाद बिना मूल भाषा ज्ञान और मनोयोग के ठीक-ठीक नहीं हो पाता। हमारे कम्प्यूटर के अंदर इंडेक्शन कोड होता है। जिसे समझना चाहिए। तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा निर्मित की गई तकनीकी शब्दावली में कठिन शब्दों की भरमार है। जिसमें सरल और सहज अनुवाद करना असंभव हो जाता है। श्री अशोक कुमार अधिकारी, पंचायती राज मंत्रालय ने कहा कि हम मानसिक गुलामी के शिकार हैं। जब हम इस गुलामी को छोड़ेंगे तभी हिन्दी को अपना पाएंगे। सरल, बोल चाल की भाषा को हिन्दी के माध्यम से ही हिन्दी को आम जनता तक पहुंचाना है। संगोष्ठी का समापन करते हुए डॉ. सी. एच. चंद्रैया, हैदराबाद से पधारे साहित्यकार ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि देश में हिन्दी के व्यापक प्रचार प्रसार में राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। अकादमी को हिन्दी को राष्ट्रसंघ की भाषा स्वीकृत कराने में आगे आना चाहिए। हिन्दी सरकारी आदेशों, संसदीय समितियों की सिफारिशों से नहीं बल्कि लोगों की जागरूकता से राष्ट्रभाषा बनेगी और गांधीजी का सपना तभी पूरा होगा। डॉ. एस.बी. प्रभु देसाई, वरिष्ठ प्रबंधक, गोवा शिपयार्ड ने कहा कि हिन्दी के अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप हेतु इंस्क्रिप्ट का प्रयोग जरूरी है। भूमंडलीकरण के दौर में कम्प्यूटर के माध्यम से हिन्दी का प्रयोग हो रहा है। रूपाम्बरा जैसी साहित्यिक पत्रिका का हर अंक को नेट पर होना चाहिए। हिन्दी रूस, लंदन, चीन, अमरिका, जापान आदि देशों में पहुंच गई, परन्तु अपने देश में अभी भी आजादी के 65 वर्षों के बाद भी हिन्दी के प्रति हम उदासीन रहते हैं। हिन्दी दिवस, हिन्दी सप्ताह साल में एक बार नहीं, बल्कि प्रतिदिन, प्रतिमाह मनाना चाहिए। और प्रादेशिक सरकारें भी यह काम करें। अभी तक हिन्दी को राष्ट्रसंघ में मान्यता नहीं मिली। जबकि छोटी-छोटी भाषाओं को मान्यता मिली है। श्री पी. एम. जौहरी अपने समापन वक्तव्य में कहा- असतो मां सद् गमय, तमसो मां ज्योतिगमय, मृत्योर्मा अमृतम् गमय का दृष्टांत देते हुए कहा कि हम अच्छी चीजों को ग्रहण नहीं करते। हमारे भीतर असीम क्षमता है, हमें उसे बाहर लाना है। भारत तभी पूर्णतया विकसित होगा। जब हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में लागू किया जाए। संविधान में राजभाषा की जगह राष्ट्रभाषा होना चाहिए। हिन्दी को राष्ट्रसंघ की भाषा बनाने के लिए जोदार प्रयास होना जरूरी है। इन सत्रों में सर्वश्री हीरा लाल त्रिवेदी (भोपाल), श्री आदित्य कुमार मित्तल, मुख्य अधिकारी (राजभाषा) पूर्वी रेलवे (कोलकाता), श्री लक्ष्मण शिवहरे, राजभाषा अधिकारी, दक्षिण मध्य रेलवे (सिकंदराबाद) श्रीमती विनीता ब्रह्न, गुवाहाटी रिफाइनरी (असम), श्री वेदपाल सिंह, निजी सचिव, पावर ग्रिड कार्पोरेशन (गुड़गांव), श्री के. डी. पासवान, श्री वीरेंद्र सिंह वरिष्ठ अधिकारी, उत्तर फ्रोंटियर रेलवे (नई दिल्ली), श्री अभिषेक कुमार, प्रबंधक, नीपको (शिलांग), श्री पद्माकर मिश्र एक्जिम बैंक (मुम्बई), श्री नीलेश कुमार, बैंक आफ महाराष्ट्र, जोनल आफिस (कोलकाता), डॉ. बी. पी. देवांगन, मध्य प्रदेश माध्यम (भोपाल), श्री भगवानदास भूमरकर, संपादक पंचायिका, मध्य प्रदेश माध्यम (भोपाल), श्री नरेश मिश्रा, संपादक, लोकसभा  (नई दिल्ली), डॉ. पूनम चतुर्वेदी, भारत सरकार टकसाल, श्री भरत सिंह यादव, प्रबंधक, इंजीनियर्स इंडिया लि. श्री मेहरबान सिंह नेगी, उपमहाप्रबंधक, उत्तर रेलवे, श्री टेक बहादुर क्षेत्री, भारतीय भाषा विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने भाग लिया।
सम्मेलन में राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी द्वारा संचालित, स्वमूल्यांकन सत्र में प्रतिनिधियों ने भाग लिया। लिखित परीक्षा-प्रश्न पत्र के तीन विशिष्ट सफल प्रतिभागियों का प्रथम, द्वितीय, तृतीय चुनाव किया गया। जिन्हें स्वमूल्यांकन प्रमाण पत्र, राजभाषा शील्ड सम्मान द्वारा सम्मानित किया गया। स्वमूल्यांकन सत्र की अध्यक्षता प्रो. सी. चंद्रैया ने की। सम्मेलन के प्रस्तावों  के लिए श्री पी. एम. जौहरी, मुख्य महाप्रबंधक गोवा शिपयार्ड की अध्यक्षता में प्रस्ताव उप समिति का गठन किया या। जिसमें निम्नलिखित सदस्य थे—
1.       श्री के पी. सत्यानंदन, निदेशक, रेलवे बोर्ड
2.       श्री अनिल कुमार शर्मा, मुख्य महाप्रबंधक
3.       नरेश मिश्र, संपादक, लोकसभा सचिवालय
4.       श्रीमती लता अम्बवानी, पर्यवेक्षक, पावर ग्रिड कार्पोरेशन
5.       डॉ. एस. बी. प्रभुदेशी, संसदीय कार्य मंत्रालय वरिष्ठ प्रबंधक, गोवा शिपयार्ड
6.       श्री भरत सिंह यादव, वरिष्ठ प्रबंधक (राजभाषा)
7.       प्रो. सी. एच. चन्द्रैया, वरिष्ठ विद्वान, साहित्यकार
8.       श्री अभिषेक कुमार, प्रबंधक, नीपको, शिलांग
9.       श्री लक्ष्मण शिवहरे, वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी, पावर ग्रिड दिनांक 29.10.13 को प्रातः 8 बजेसे दोपहर 1 बजे, शैक्षणिक पर्यटन के अंतर्गत प्रतिनिधियों ने सिक्किम के दर्शनीय स्थलों का परिभ्रमण किया। अपराह्न 3 बजे से 5 बजे तक समापन सत्र समारोह की अध्यक्षता श्री डोरजी नामग्याल, सिक्किम विधानसभा के वरिष्ठ सदस्य ने की। सम्मेलन प्रस्ताव समिति के अध्यक्ष श्री श्रीपी एम जौहरी ने प्रस्ताव प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। जिसे सभी सहभागियों ने एकमत से करतल ध्वनि के साथ समर्थन किया।
इस अवसर पर सभी प्रतिनिधियों को मुख्य अतिथि श्री डोरजी नामग्याल के हाथों से सम्मेलन स्मृति चिह्न, प्रमाण पत्र द्वारा सम्मानित किया गया। श्री डोरजी नामग्याल ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि मुझे इस सम्मेलन में आकर बहुत खुशी हुई। खासकर जब यह देखा कि भारत सरकार तथा प्रदेश की सरकारों ने इतने अधिक बड़े-बड़े अधिकारी, लेखक, विद्वान एक साथ इकट्ठा होकर भाषा साहित्य के बारे में और हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए गम्भीरता पूर्वक विचार तीन दिनों से कर रहे हैं। सम्मेलन में सभी को सम्मानित करना बहुत अच्छी परम्परा है। ऐसे बड़े सम्मेलनों से आपसी भाईचारा और सौहार्द्र बढ़ता है, देश की अखंडता सुदृढ़ होती है। जैसा कि अभी-अभी पारित किए गए प्रस्तावों से मुझे जानकारी मिली। यह सभी प्रस्ताव भारत सरकार तथा प्रादेशिक सरकारों को मानना चाहिए। इन प्रस्तावों से भाषा साहित्य को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
समापन सत्र के अंत में मुख्य अतिथियों प्रतिभागियों, मीडिया एवं सिक्किम, गान्तोक के विशिष्ट अतिथियों को सम्बोधित करते हुए अकादमी अध्यक्ष डॉ. स्वदेश भारती ने कहा कि भाषा साहित्य के बिना जीवन शून्य तथा जर्जर होता है। शब्दों की महत्ता को समझना ही बुद्धिमत्ता है। भाषा साहित्य मनुष्य के जीवन को आनन्द से भर देता है। इसलिए भाषा साहित्य के प्रति अस्थावान होना सभी के लिए जरूरी है। मैं उपस्थित प्रतिभागियों और सिक्किम की जनता को विशेष धन्यवाद देना चाहता हूं, जिन्होंने सम्मेलन को सफल बनाया। श्री भारती ने कहा कि लगभग 25 वर्षों से राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी के संचालन में सक्रिय योगदान देने वाले अकादमी के मानद अध्यक्ष, पूर्व सांसद डॉ. रत्नाकर पांडेय एवं निदेशक श्री राजेन्द्र जोशी, अपनी गम्भीर अस्वस्थता के कारण सम्मेलन में उपस्थित नहीं हो सके। प्रवर समिति के कई सम्मानीय सदस्य भी अपरिहार्य कारणों से इस सम्मेलन में पहुंच नहीं पाए। हम सभी सम्मेलन के प्रतिनिधि डॉ. पांडेय एवं श्री जोशी के शीघ्र स्वस्थ होने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता हूं।
दिनांक 25.11.2013 को होटल टाशी डेलेक में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में गान्तोक, सिक्किम में स्थित राष्ट्रीय मीडिया, दूरदर्शन, आकाशवानी आदि के 25 प्रतिनिधि उपस्थित थे। तीन दिनों का सम्मेलन का कवरेज मीडिया ने व्यापक रूप से प्रचारित-प्रसारित किया। प्रसार भारती दूरदर्शन, आकाशवानी तथा अन्य चैनलों ने प्रचारित-प्रसारित की। सिक्किम मेल, सिक्किम एक्सप्रेस, हिमाली बेला, हिमाली दर्पण, जमाना, नयुमा समाचार, समय दैनिक, दैनिक जागरण आदि ने विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की। उद्घाटन सत्र के दिन विशेष रूप से आयोजित सिक्किम के कलाकारों ने अपने मनोरम नृत्यगान द्वारा सिक्किम के बहुआयामी संस्कृतिक की झलकियां अत्यधिक सुन्दरता के साथ प्रस्तुत की। सभी प्रतिभागी उसे देखकर मंत्रमुग्ध रह गए और आनन्दमग्न होकर कलाकारों के साथ नृत्य भी करने लगे। सम्मेलन की विशेष उपलब्धि है कि सभी प्रतिनिधियों ने सम्मेलन को गम्भीरता पूर्वक आत्मसात किया। और प्रसन्नचित होकर अपने-अपने स्थानों पर लौटे।

अंतर्राष्ट्रीय सार्क भाषा साहित्य सम्मेलन गान्तोक, 27-29 अक्टूबर 2013
प्रतिवेदन-प्रस्ताव
1.       राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी, रूपाम्बरा द्वारा भारत सरकार द्वारा गठिन माननीय संसदीय राजभाषा समिति की तीनों उप-समितियों में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिए जाने की सिफारिश की जाए।
2.       स्वैच्छिक स्वयं सेवी संस्थाएं (एनजीओ) जो हिन्दी के प्रगति का प्रचार-प्रसार कर रही है, उन्हें आर्थिक सहायता एवं उपयोगी संसाधन प्रदान किए जाएं।
3.       प्रत्येक कार्यालय में कुछ कठिनाइयां जैसे संसदीय राजभाषा समिति की प्रश्नावली, रिपोर्ट विवरण, आश्वासन आदि को सही तरीके से भरने की सुनिश्चितता करने के लिए नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति के माध्यम से कार्यक्रम चलाए जाएं।
4.       वर्तमान कार्य पद्धति को ध्यान में रखते हुए समिति की प्रश्नावली का सरलीकरण कर व्यवहारिकता से जोड़ी जाए।
5.       लोकसभा की भांति राज्यसभा में भी हिंदी सलाहकार समिति गठित की जाए।
6.       हिंदी विज्ञापनों का प्रतिशत न्यूनतम 50 प्रतिशत हो, क्षेत्र में सभी सरकारी विज्ञापन तथा विदेशी कंपनियों के विज्ञापन हिंदी में देने के लिए राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय उचित निर्देश दें।
7.       सार्क देशों में भी हिन्दी के व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों की श्रृंखला प्रारंभ की जाए।
8.       हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) की सूची में शामिल किया जाए। उसके लिए आवश्यक धन की व्यवस्था केन्द्रीय सरकार यथाशीघ्र करें।
9.       राज्य स्तर पर वर्ष में एक बार राजभाषा सम्मेलन का आयोजन किया जाए जिससे केन्द्रीय तथा राज्य सरकार आर्थिक सहयोग प्रदान करें और इसकी शिफारिसें भारत सरकार को भेजी जाए।
10.   राज्य स्तर पर 14 सितम्बर को हिंदी दिवस सभी प्रांतीय सरकार द्वारा भी मंनाया जाए।
11.   जो कर्मचारी हिंदी में अपेक्षाकृत अधिक कार्य करते हैं उनका वार्षिक मूल्यांकन करते समय वरीयता अंक दिए जाएं जो उनकी पदोन्नति में सहायक हो, यह व्यवस्था केन्द्रीय तथा राज्य सरकार के उपक्रमों में लागू की जाए।
12.   केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा छात्र-एक्सचेंज कार्यक्रम के अंतर्गत विदेशों में हिंदी के विकास के लिए छात्र भेजे जाए उसी तरह विदेशी छात्रों को भी इस कार्यक्रम के अंतर्गत आमंत्रित किए जाए तथा इसके लिए एक पर्याप्त अवधि सुनिश्चित की जाए। इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए केंद्रीय सरकार और केन्द्रीय विश्वविद्यालय सहयोग प्रदान करें।
13.   संविधान में संशोधन किया जाए तथाराजभाषा को राष्ट्रभाषा किया जाए।
14.   ऐसे देशों में जहां भारतीय मूल के नागरिकों की संख्या अधिक है वहां हिन्दी के अध्यापन हेतु अध्यापकों की संपूर्ति की जाए।
15.   देश के सारे स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में त्रि-भाषा फार्मूला अनिवार्य रूप से लागू किया जाए।
16.   हिंदीत्तर राज्यों में हिंदी अध्यापन से जुड़ी अध्यापकों के लिए प्रोत्साहन योजना लागू की जाए तथा शिक्षकों को भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत किया जाए।
अध्यक्ष, पी. एम. चौहरी, मुख्य महाप्रबंधक (मानव संसाधन) गोवा शिपयार्ड लिमिटेड, वास्को, गोवा,  डॉ. सी. एच. चंद्रैया, पूर्व आचार्य हैदराबाद विश्वविद्यालय, डॉ. एस. बी. प्रभु देसाई, वरिष्ठ प्रबंधक (राजभाषा), गोवा शिपयार्ड लिमिटेड, वास्को गोवा, अभिषेक कुमार प्रबंधक (मानव संसाधन), नार्थ इस्टर्न इलैक्ट्रिक पावर कं. लि. शिलांग, श्री लक्ष्मण शिवहरे, वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी, दक्षिण मध्य रेवले, सिकन्दराबाद, श्रीमती लता अम्बानी, पर्यवेक्षक (मानव संसधान) पावर ग्रिड कं. गुड़गांव तथा अन्य सम्मानित सदस्य, प्रतिभागी।
-          स्वदेश भारती
राष्ट्रीय अध्यक्ष
                                                         राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी
दिनांक – 30.10.2013
3, जिब्सन लेन,

कोलकाता – 700 069