Friday 5 April 2013

राजा ने उस गरीब बालक को

राजा ने उस गरीब बालक को
अपने सुरक्षा प्रहरी आदेश देकर बुलवाया
जो रात भर ड्योढ़ी पर अकेला
भूखा प्यासा फरियादें लिए
अंधकार के बात जाने की प्रतीक्ष करता
सुबह होने का
बालक निडर होकर राजा के सम्मुख उपस्थित हुआ
राजा ने पूछा- बालाक! तुम्हारा  राजदीवार में आने का मतलब क्या ?
बालक बोला- हुजूर, गरीब परवर, दयानिधि
आप सारी प्रजा के पालनहार हैं मैं आपके  री राज्य में अत्यंत गरीब ब्राह्मण कुल में पैदा हुआ  मेरा पिता का काम ज्ञान-कर्म से लोगों को सत्यमार्ग पर चलना सिखाया था किन्तु बहुत सारे लोग
सच्चाई के बदले झूठ का सहारा लेकर समाज  में घोर अत्याचार का नृशंस खेल आरम्भ कर दिए।
मेरा घर लूट लिए
जो भी सामान था लूट लिए
घर को जला दिया, पिताजी मृत्यु को गले लगा लिया मैं बेसहारा भटक रहा हूं
हमारी आवाज कोई सुनने वाला नहीं मैं शब्द ॉ-शिल्पी हूं
किन्तु रोटी और शब्द में
बहन भाई जैसे सम्बन्ध हैं
आपको राज्य में भूख, निराश्रितों के लिए जिजीविषा के सारे रास्ते बन्द हैं।
राजा ने अपने सभासदा से पूछा-ऐसा क्यों हैं
हमारे राज्य में विकास से आप सब क्यों अंधे हैं। सभासद सिर नीचा किए मौन निरुत्तरित खड़े थे वे सभी असमंजस में थे कि क्या बोलें किस तरह सच्चाई बयान करने के लिए मुंह खोलें सभासदों की चुप्पी देखकर राजा बेहद क्रोधित हुए बालक को कहा- तुम्हारे प्रशनों के उत्तर कल दूंगा आज तुम अतिथिशाला में विश्राम करो राज सभा भंग हो गई। राजा के जाने पर दरबार से सभी सभासद बाहर चले गए दूसरे दिन राजदरबार में राजा सिहांसनासीन हुए फऱियादी बालक को लाया गया। जनप्रतिनिधि, दरबारी सभी राजा का निर्णय जानने हेतु उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे
राजा ने आदेश दिया- सभी सभासदों को उनके पदों से हटाकर साधारण खेतिहर की तरह उन गांवों में भेजा जाए जहां विकास नहीं हुआ है और छः महीने में गांव को प्रगति के रास्ते पर लाया जाए भूख, बीमारी, अभाव निर्मूल किया जाए ऐसा न होने पर सभासदों को प्रगति के रास्ते पर लाया जाए ऐसा न होने पर सभासदों को फांसी पर लटकाया जाए यह फरमान सुनकर जनता प्रसन्न हो उठी बालक ने राजा को धन्यवाद दिया किन्तु, सभासद नतमस्तक हो हाथ जोड़ कर रोने गिड़गिड़ाने लगे। राजा के सम्मुख सभी साष्टांग गिर पड़े- महाराज हमें बचा लें। हमसे भूल हुई। विकास की सही तस्वीर हमने आपको गलत रिपोर्ट दी।
राजा ने कहा - तुम सबकी लापरवाही के कारण हमारे राज्य में प्रजा को जो कष्ट हुआ उसके जिम्मेदार सभासद हैं। इसलिए वे सब फांसी के अधिकारी हैं बालक को जनता ने कंधे पर उठा लिया उसके जिन्दाबाद से दिशाएं गूंजने लगीं। बहादूर बच्चे को राजा ने भी यथेष्ट धन दिया।

3 मार्च, 2013


सुख के रास्ते कई हैं
किन्तु
दुख का कोी वैकल्पिक रास्ता नहीं
दुख में अपनत्व के अतिरिक्त
किसी का वास्ता नहीं।

14.3013


गन्तव्य की दूरी

सभी विघ्न बधाओं के बीच
णैं अपने पथ पर चलता रहा
कई बार पथ द्वारा
कई बार गन्तव्य की दूरी बढ़ी
इसी तरह उम्र की धूप तेजी से कर्म के
क्षितिजों में चढ़ी
कीचड़ में गिरने से
वर्तमान ने बचाया बाहें खींच...

मैं आपदाओं से लड़ता
अपने गन्तव्य-पथ पर आगे
आगे बढ़ता रहा
भले ही मेरा समय
कुम्हलाए टेसू फूल की तरह झड़ता रहा
अपने सपनों को
कसकर बांधे रहा प्रारब्ध की
मुट्ठियों में भींच....

श्रुतियों के सहारे
अंतीत से सीख लेकर
अपने पथ पर चलता रहा
मन, आंखों में
आकांक्षा से हाथ मिलाकर नव्यतम
सपना पलता रही, चलता रहा
अनिष्ठ से आंखें मींच...


15.3.13

No comments:

Post a Comment