Sunday 9 December 2012

अतीत की स्मृतियां

छोड़ दिया अतीत की स्मृतियों का गुनना
तोड़ दिया भ्रम, दुराव और प्रवंचना के सेतु
जोड़ लिया कुछ नए-नए सपने
कुछ नए संबंध
कुछ आत्मीयता के नव छन्द
छोड़ दिया आस्था-अनास्था के जाल बुनना...

एक मंजिल तय करने के बाद
दूसरी, तीसरी, चौथी पांचवीं
और इसी तरह कई तरह की कई मंजिलें पार करता
मन के रेत में तटबंध चलता रहा
सबेरे और शाम के आकाश-क्षितिज में
महावरी रंग
आलो छाया के बीच
मुझे अपनत्व की सीख देता रहा
और अंधेरे में नया स्वप्न पलता रहा
अब तो अच्छा लगता है
व्यामोह की शेष-कथा सुनना...

                                                कोलकाता
                                                                19.7.12






चेहरे और शब्द

समय के दर्पण में
कितने पग आगे चले
और पीछे लौटे
देरी हो गई प्राण-अर्पण में..

कुछ कुछ दुनिया के रंग देखे
ढंग देखे, इतिहास के हजार हजार कटे अंग देखे
विगलित, विभाजित विकलांग सत्ता के
जन-विरोधी ढंग देखे
नेता बदलते रहे अपने रंग क्षण-क्षण में...

आत्मसात किए अपने दुख, देख कर स्तव्ध रहे
समष्टि के संत्रास का संसार
ओछा चरित्र, प्रवंचित प्यार का कष्ट कहे
हत्या, आत्महत्या, विडम्बना,
क्रोध, प्रतिशोध के महाभारत-रण में

आत्मजयी होने के लिए ही
शब्दों से यारी की
शब्दों के लिए ही अर्थ बुहारी की
आह! विचित्र संयोग है कि
सुखानुभूति से भर गया शब्द-प्राण अर्पण में।



                                                                कोलकाता
                                                                20.7.12






सोच-वृक्ष

सोच के कितने सारे वृक्ष लगाए
शब्द-बीज भी बोए
जीवन को धनधान्य भरा बनाने में
कठिन से कठिन रास्ते अपनाएं
वीहड़, सघन जंगल के बीच,
सागर के किनारे, नदी की
उच्छ्वाल, चंचल, संकुल धारा के साथ चले
जब समय के कदली पत्र पर
शून्या काश से गिरते
मोतियों जैसे तुहिन कण ले
मैंने नए-नए आत्मबोधी वृक्ष लगाए....

अदम्य उत्साह से भरकर
जीवन में हरियाली, फूल और सुगंधि के लिए
बहुत सारे वन प्रांतर में विचरण करते हुए
तरह-तरह की प्राण संवेदना के नव पात,
रंग-विरंगी कलियों के सौन्दर्य धन जुटाएँ
और उसी से शब्दों के अर्थ किए
जीवन के नवस्वरूप अपनाएं।

सोच के ताने-बाने संयोजित किए
और उसे तरह तरह के अर्थावरण बनाए
धनधान्य भरा जीवन के लिए
प्रकृति से आशीष मांगे
और यह भी कि समष्टि की भाग्य
अटूट निद्रा से जागे
और दूसरों को जगाए.....


                                                                कोलकाता
                                                                21.7.12







अणु विस्फोट

वह कैसा क्षण होगा
जब हजार टन-अणुशक्ति का विस्फोट
दिशाओं को प्रकंपित करेगा
अंधकार, ज्वालामुखी लावा बरसाएगा
चारों ओर विनाश का दृश्य देखने कोई रहेगा नहीं
केवल आकाश अपनी स्तव्धा
और गाढ़े मौन के बीच साक्षी बना रहेगा
मूक दर्शक, अबोल

वह कैसा दिन होगा जब अणु के
विस्फोट विनाश में दब जाएंगी
इतिहास की स्मृतियां
छिन्न-भिन्न हो जाएंगी पोथियां पत्रियां
शब्द घायल पंछी की तरह
अपने डैने फड़फड़ाएगा
दुनिया की ऐश्वर्य हो जाएगी मिट्टी की मोल

पृथ्वी का स्वरूप बदल जाएगा
राख और चट्टान, रेगिस्तान में
नदियां सागर सूख जाएंगे
हरियाली का नामो निशान नहीं रहेगा
तब धरती का ममत्व, संकट का
सब कुछ, संत्रास की पीड़ा सहेगा
करवट बदलेगी धऱती
बदल जाएगा मौसम, खगोल।


                                                                 कोलकाता
                                                                23.7.12







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