Wednesday 28 March 2012

विनाश के समय

एक ऐसे भी समय की ओर दृष्टि जाती है
जहां नदियां सूखी पड़ी हैं
जंगल वीरान हैं
रास्तों के दोनों ओर हरियाली मिट गई है
हवा सूखी आहें ले रही है
आकाश का चेहरा मुरझा गया है। अकाल का
सन्नाटा छाया है धरती के आरपार
बदहाली की घिर गई है दीवार
एक ऐसे समय का चेहरा सामने आ जाता है
जब नदी-सागर-तट पर गहरा सन्नाटा छा जाता है
लहरें शांत, मौन, उदास है और चारो ओर विषमता का  धुन्ध भरा है
अग्रितप्त सूर्य तपा रहा धरती का ओर छोर
जीवन जल भुन कर राख हो रहा है
धरती पर उठ रहा है कर्ण भेदी आहत स्वर-हाहाकार
एक ऐसा भी क्षण दिखाई दे रहा है क्षीतिज के आरपार
जहां जीवन के सभी परिदृश्य बदल गए हैं
समय के अग्नि मेला में
जिजीविषा के सारे पैमाने जल गए हैं
आदमी अपनी हताशा की गठरी लादे
अभिशप्त-समय-पथ पर चल रहा है
थके पांव, पथ श्लथ, रक्त लथपथ
गत विगत की स्मृतियों को
हृदय की झोली में छिपाए मौन, स्वर
चलता जा रहा अनन्त यात्रा-पथ पर
नई सृष्टि-निर्माण करने
आशाओं के रिक्त घट भरने
खाली हृदय
नए घर की खोज करने
साधने अपना समय
विनाश के समय
                   21.03.2012


अंकुर की आत्माभिव्यक्ति
मैं अंकुर हूं मिट्टी के गर्भ से
छोटे से बीज से जन्मा, बादल, सूर्य-आलोक-ताप,
हवा और धूप की बाहों ने सहारा दिया
अंकुरित होकर ऊपर उठते ही
हवा ने चुम्बन दिया,
रोशनी ने आशिर्वाद
पंछी मेरे इर्द गिर्द अपने कल कूजन से
प्रसन्नता प्रकट करने लगे कि
जब बड़ा होकर वृक्ष बनूंगा, तब वे
मेरी शाख पर अपने नीड़ का निर्माण करेंगे

मैं कितना बड़ा, सघन, छायादार वृक्ष बनूंगा
कितना अपने फूलों, फलों से
प्रकृति की उष्मा के साथ मिलकर
कितना कुछ जड़, चेतन को
नवोल्लास, आनन्द से सरस, सारयुक्त,
सुन्दर, सौन्दर्य वान बनाऊंगा
चिड़ियों के कलनाद को हृदयंगम करता
सबको फल दूंगा
उस फल को अतीत और वर्तमान ने चखा है
मैने अकेले ही अपनी हरियाली की उष्मा
उन्मुक्त मन से ग्रहण किया और यह सीख ली
कि देते जाओ अपना सर्वस्व, पंछी, बन जंतु,
जन-जन के आनन्द के लिए समर्पण ही जीवन है।
समय से जो वरदान मिला है, बांटते जाओ,
मुझे इस बात का अहसास है कि
लोग मेरा फल खाएंगे, मेरी डालें काटेंगे
अपना घर सजाएंगे, बची टहनियां को
जलाएंगे। इस तरह आनन्द और अभिसप्त भरे जीवन में
हवा, धूप, धरती और आकाश ही मेरे सखा है
मेरे अस्तित्व विहीन होने पर भी मेरे बीजों से
नए नए अंकुर को नव जन्म देते रहेंगे
मेरे बाद भी
अपनी करुणा से मेरे रिक्त हृदयघट को भरते रहेंगे।

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