Wednesday 14 March 2012

चिन्तन की तराजू पर

चिन्तन की तराजू पर
मैं अपने को तौलता हूं दिन-प्रतिदिन
परन्तु अपना भार बता नहीं पाता
समय ही भारी पड़ता है
जो हमारी जगह स्वयं ही बैठ जाता अनस्वर
चिन्तन की तराजू पर...

संवेदना के संधि पत्र पर
दिशा सूचक दिनचर्याओं से
गुजरने का संकल्प लेता
मुट्ठियों में आत्म विश्वास भरता
अपने वजन को बढ़ाने का यत्न करता
नए-नए संदर्भों से जोड़ता नाता
मन के कलश में भरा समष्टिपरक जल
अभिव्यक्ति के चरणों में अंजुरी भर समर्पित कर देता
प्रतिदिन तौलता कर्म की गठरी का वजन
समय की तराजू पर...

चाहे जिस तरह जितनी तरह कोशिश करूं
भार का सही मूल्यांकन नहीं हो पाता
इस प्रक्रिया में
बहुत सा भार चला जाता
मित्रों, संबंधियों, आत्मीयों के आत्म-समायोजना में
बहुत कुछ भार बंट जाता प्रवंचना के आत्म क्रन्दन में
विनार्थ अनुबन्धन में
और अपने को संतुलित रखने के लिए
कुछ वजन घटाता, बढ़ाता वर्तमान के चौराहे पर
समय की तराजू पर...

                                            3 मार्च, 2012



शब्द-बोध
मैं पृथ्वी पर पहला कदम रखते हुए रोया था
और मां ने असीम स्नेह ममता से आह्लादित होकर
मुझे चूमते हुए कहा था- बेटे! रोते नहीं
अपने आंचल से ढक कर स्तनपान कराते हुए
वात्सल्य-गीत गाकर मेरे सिर, पीठ, कन्धों को थपथपाने लगी थी
वहीं से प्रारम्भ हुई मेरी शब्द-यात्रा
ग्रहण किए बहुत सारे शब्द-मंत्र

समय के चरखे पर
संवेदना के सूत कातते हुए ग्रहण किए
प्रकृति के विविध उपादान
चिन्तन-अनुचिन्तन के विविध रंगों से
धागों को रंग कर
अभिव्यक्ति के बनाए विविध वस्त्र
और उसी को बनाया आवरण
सजाए संवारे संवेदना कई कई तरह से सब दिन, सर्वत्र...

आज तक मां के आनन्द गीतों में
फूलों के रंगों में वनपाखी के कूजन में
सुख-दुख के आंसुओं में खोजता रहा जीवन का अर्थ
बनाए नए नए शब्द-सेतु
जिस पर चलते हुए महामानव के चरणों में अर्पित किए
विविधवर्णी अभिव्यक्ति के फूल
और समष्टि से पाया आशीष दान
हृदय की झोली भर स्नेह-शब्द-शस्त्र...

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