पेड़ ने हवा से कहा -
तुम आओ और मुझे
अपने आलिंगन में बांध लो
हवा बोली-
तुम पेड़ हो
पेड़ को द्रुमलता ही आलिंगन में बांधे तो
जीवन की सार्थकता है
पेड़ चुप रह गया
फिर बोला-
मैं पेड़ हूं
मेरी जड़ें भले ही
दूसरे पेड़ों की जड़ों से गले मिलें
अपनी अन्तरंगता का भूगर्भित खाली समय काटें
मेरे जिस्म की टहनियां
एक दूसरे से अपना सुख-दुःख बांटे
परन्तु कोई दूसरा पेड़
जो मेरा बहुत करीबी है
हाथ बढ़ाकर
मेरे हाथों को जब भी छूता है
एक तुफान आकर
या तो उसे
अथवा मुझे
धरासायी कर जाता है
हमने जिया
धरती की गंध
हरियाली बांटी
सजाया संवारा
प्राण संवेदना की
चिर संचित थाती
हमने जो कुछ जिया
उसे भी
और सारे फूल-फल सबको दिया
सघन छाया दी
लकड़ियां तक अर्पित की
किन्तु हमने किसी से कुछ भी तो नहीं लिया।
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